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THE PHOTOGRAPHER

और भगवान ना करे की वो हम सब को छोड़ कर स्वर्ग ना सिधार जाए । बस इसी वजह से वो उसे दुकान पर जाने से नही रोकती । इसी तरह दिन गुजरते गए सुबह होती शाम होती हरकू दुकान खोलता अलाव जलाता उस के कुछ पुराने मित्र जो गांव मै ही रहते थे । उसके पास आ जाते वो सब मिलकर पिछला वक्त याद करते ओर कभी उदास होते तो कभी खुश बाकी तो सब शहर की तरफ रुख कर चुके थे । कोई ज्यादा पैसे कमाने के खातिर तो कोई अपने बच्चो की अच्छी शिक्षा देने के लिए शहर चला गया था । गांव का वो चॉक जो कभी लोगो से भरा होता था शाम को जहा सब लोग एक दूसरे से अपना सुख ओर दुख बाटा करते थे जहा पर कभी बूढ़े लोग हुक्का ओर बीड़ी का आनंद लेते थे । आज वहा सन्नाटे ने अपना बसेरा कर रखा था। अब तो वहा से परिंदे भी उड़ चुके थे उन्होंने भी अपना बसेरा कही ओर बना लिया था । बस इसी तरह हरकू की जिंदगी की गाड़ी का पहिया चल रहा था कि तभी एक दिन हरकू अपनी दुकान पर बैठा कुछ सोच ही रहा था । कि अचानक उसे किसी ने पीछे से आवाज देकर कहा " ओह फ़ोटो वाले क्या मेरी एक तस्वीर उतार दो गै " ये सुन हरकू ने आश्चर्य से पीछे मुड़कर देखा तो वो एक ३/४ साल का एक बच्चा था । हरकू सोचने लगा की आखिर ये बच्चा कोन है जो मेरी दुकान पर फ़ोटो खिचवाने k लिए आया वो अंदर ही अंदर मुस्कुरा रहा था ।क्योंकि वो जनता था की गांव या शहर के बच्चे तो उसकी दुकान पर आने से डरते है । क्योंकि जो कैमरा उसके पास था उससे बच्चे डर जाते थे ।क्योंकि  जब उसकी लाइट उनके चेहरे पर पड़ती तो वो घबरा जाते वो समझते की किसी भूत ने या ड्रैगन ने उनके चेहरे पर आग का गोला फेंक दिया हो । हरकू की निगह कमजोर हो गई थी । जब वो बच्चा उसके नजदीक आया तो हरकू की खुशी का ठिकाना ना रहा उसने उसको गोदी मे उठा लिया दरअसल वो बच्चा कोई ग्राहक नही था वो तो उसके बेटे मोहन का बेटा मोंटी था जो की अभी अभी गांव आया था  हरकू कभी उसके गाल चूमता तो कभी माथा । हरकू की खुशी का कोई ठिकाना नही था अपने पोते को देख वो अपने सारे दुख और दर्द भूल चुका था । उसने मोंटी को नीचे जमीन पर उतारा अपनी गोदी से । ओर दुख भरी आवाज में कहा मेरे बच्चे कहा थे तुम क्या तुम्हे मेरी याद नही आती थी वहा । तुम्हे पता है मे तुम्हे कितना याद किया मै और तुम्हारी दादी रोज शाम को बैठ कर तुम्हारी बाते किया करते थे । कितने बड़े हो गए हो तुम किसी की नजर न लगे  । तभी मोंटी कहता है , मे ने भी आप दोनो को बोहोत ज्यादा याद किया मोंटी प्यार भरी आवाज मै कहता है आप भी चलिए हमारे साथ शहर मेरे सबदोस्तो के दादा दादी उनके साथ रहते उन्हे रोज नई नई कहानी सुनाते हैं पारियों की, राजकुमारो- राजकुमारियों की , गांव की ओर कभी भूतो की वो सब मुझे चिड़ाते है । तब हरकू कहता है कोन है वो जो मेरे पोते को चिड़ा ता है अब तुम आ गए हो अब मै और तुम्हारी दादी तुमको रोज एक नई कहानी सुनाए गै । ये सुन मोंटी खुशी से झूमने लगा । तभी वहा रेखा आ जाती है और हरकू ओर मोंटी को अंदर चलने का कहती है क्योंकि बाहर काफी ठंड थी । हरकू जो की मोहन से नाराज़ था अंदर नही जाता रेखा मोंटी को अपने साथ अंदर ले जाती है । मोंटी जो की भागता हुआ अपने दादा दादी  से मिलने आ गया था । मोहन और उसकी पत्नि अभी ही घर मै पिरवेश करते है वो दोनो रेखा को नमस्ते करते है और पैर छूते है । मां बाबा नही है क्या घर मै मोहन ने पूछा रेखा कहती है बाहर बैठे हैं दुकान पर ये सुन वो दोनो बाहर दुकान की तरफ चले जाते है हरकू जो की दुकान की दहलीज पर बैठा था बेटे और बहू को देख खड़ा हो गया उसने उन दोनो को आशीर्वाद दिया मोहन की पत्नी ने उसे अंदर आने को कहती है साथ मै मोहन भी उसे अंदर आने को कहता है वो कोई उत्तर नही देता मोहन समझ गया था की हरकू उससे नाराज़ है । वो दोनो अंदर चले जाते है इतने मै रेखा चाय बना लाती है वो अब चायपीते हैं मोंटी जो की सफर मै काफी थक सा गया था वही सोफे पर सो गया । मोहन की पत्नी उसको कमरे मै ले जाती है । तभी मोहन रेखा से कहता है क्या बाबा पिता जी मुझसे अब भी नाराज़ हैं । तभी रेखा कहती है वो नाराज़ नही है वो परेशान है क्योंकि उनकी वो दुकान जिसे वो तुम्हारे हाथो से चलता देखना चाहते थे । उसको अब बेचने की बात करते हो तुम । तब मोहन कहता है मां जमाना बदल चुका हे अब आदमी की जरूरत सिर्फ रोटी , कपड़ा और मकान नही रहा अब इंसान के हजारों खर्चे है खुवाहिशय जिनको पूरा करने के लिए एक अच्छी नौकरी का होना जरूरी है तुम्हे पता है मां दिल्ली कितना मेहंगा शहर अगर वहा तुम्हारी अच्छी नौकरी नही है तुम्हारे बच्चे अगर अच्छे स्कूल या कॉलेज मै नही पढ़ रहे ओर तुम्हारे पास गाड़ी नही हैं तो तुम्हे वहा कोई जाने गा नही तुम्हारा कोई क्लास नही यहा तक की तुम्हारा कोई अस्तित्व नही । ये सुन रेखा उदास मन से कहती है अब तुम शहरी हो चुके हो अब तुम्हे गांव अच्छा नही लगेगा । तभी मोहन मां की बात को काट ते हुए कहता हे मै पिता जी से मिलने जा रहा हू मै खुद बात करता हू उनसे उस वक्त मीनू मेरे साथ थी मै ज्यादा बात ना कर सका उनसे । तभी रेखा उसे रोकते हुए अपनी आवाज में दर्द सा लिए उससे कहती हैं बेटा अभी उनसे दुकान को बेचने का कुछ मत कहना वो अभी ही पोते को देख कर थोडा खुश हुए है वरना तो वो काफी दिन से उदासथे  । ठीक हैं मां तू कहती हैं तो मैं कुछ बात नही करूंगा दुकान से मुतल्लिक पर हा मै आप लोगो को लेकर ही जाऊंगा अपने साथ कुछ भी हो जाए । ये सुन रेखा वहा से बिना कुछ कहे। बहू के कमरे की तरफ चल दी । दूसरी तरफ मोहन भी दुकान की तरफ चल दिया । दुकान के अंदर प्रवेश करते ही उसे उसके बचपन की तस्वीर जो की सामने दीवार पर टंगी थी दिखाई दी । तभी वो आवाज लगाता हैं पिता जी पिता जी ये आवाज सुन हरकू का दिल मानो रो पड़ा हो इस आवाज को सुनने के लिए उसके कान तरस गए थे उसका दिल पिघल सा गया और उसे वही बचपन वाला मोहन याद आ गया जो स्कूल जाते समय उससे चीज के लिए पैसे मांगने आता था । हरकू काफी सकतय मै था वो आवाज निकाल ना चाह रहा था पर मानो उसके दिल को किसी ने पकड़ सा लिया हो । मोहन ने दोबारा आवाज दी इस बार हरकू ने अपने दिल को संभालते हुए और अपने आसुओं को पीते हुए दर्द भरी आवाज मै कहा " मे इधर हू कैमरे के पीछे थोड़ा साफ कर रहा था काफी धूल जम गई थी " सफाई तो सिर्फ एक बहाना था दरअसल हरकू अपने बेटे से छुप रहा था क्योंकि वो जनता था की उसका बेटा उससे इस दुकान को बेचने का कहे गा इस बार वो पक्का इरादा कर के आया था । तभी मोहन उसके पास आ पोहोचा वो उसको गले लगाना चाहता था इससे पहले की वो गले लगाता । हरकू ने उसको कस के गले लगा लिया और जो आसू वो अब तक छुपा रहा था वो सब बाहर आ गए आखिर कब तक उनको अंदर रखता बाप था वो आखिर वो जितना बाहर से सख्त था उतना ही अंदर से मॉम की तरह नरम शायद बाप ऐसे ही होते है काफी देर तक हरकू मोहन को गले से लगाये रखा तब मोहन कहता हे पिताजी आप रो क्यों रहे हे , हरकू कहता है कुछ नही ये तो खुशी के आंसू हैं बोहोत दिनों बाद आज मेरे कलेजे को राहत मिली हरकू ने कहा काफी अरसे के बाद देखा है तुमको इसलिए शायद आज कुछ ज्यादा ही आसू आ गए । तभी मोहन कहता हे बोहोत कमजोर हो गए हे आप लगता है ठीक से खाना नही खाते हे । ठीक हू ठीक हू मुझे क्या होना है इस उमर में तो कमजोरी हो ही जाती है अब मेरा पोता भी तो आ गया अब बिल्कुल ठीक हो जाऊंगा । तभी हरकू उससे पूछता है की वो कब तक यहां रुके गा मोहन बताता है की वो दो हफ्ते यहां रूके गा और उसके बाद आप दोनो को अपने साथ लेकर दिल्ली चला जाएगा । ये सुन कर हरकू के चेहरे की खुशी कही उड़ सी गई वो बोला बेटा मै और तुम्हारी मां यही इस गांव में पले बढ़े हैं हम दोनो को यही रहने दो इस घर ओर दुकान को मत बेचो मोहन कहता हे पिताजी मुझे शहर मै अपना कारोबार करना है जिसके लिए मुझे बहुत सारे पेसो की जरूरत है अभी सिर्फ दुकान बेचना हैं उससे जो पैसे मिलेंगे वो कारोबार में लगा दूंगा घर पर किराए दार डाल दूंगा बाद मै जरूरत पड़ने पर घर को भी बैच दूंगा  । मे कल ही किसी real State वाले को बुलाकर घर ओर दुकान दिखाता हू ओर पता करता हू की इस खण्डर दुकान और घर के कितने पैसे मिल जाएंगे । मोहन की ये सब बाते सुन कर हरकू का दिल बैठ सा रहा था वो दुकान वो घर जिसे उसने अपने खून ओर पसीने की कमाई से सीचा था जहा उसके बेटे का बचपन गुजरा आज वही बेटा उस दुकान और घर को खंडहर कह कर पुकार रहा था । वो समझ गया था शहर की ऊंची ऊंची इमारतों के आगे उसे ये खंडर ही लगे गै । हरकू अपनी आखरी कोशिश करते हुए अपनी आंखो मे आंसू लिए हुए मोहन से कहता हे बेटा ऐसा मत करो तब मोहन जवाब देता है इस बार आप दोनो हमारे साथ चल रहे हे बस मै ने कह दिया हमे मोंटी को पड़ोसियों के यहां छोड़ कर जाना पड़ता है जब हम दोनो को जॉब पर जाना होता है और आया बहुत मेहंगी होती है ओर ना वो घर मै बच्चो का ध्यान रखती है घर से समान चोरी कर लेती हैं । जब आप दोनो हमारे साथ रहे गै तो हमे मोंटी को पड़ोसियो के यहांछोड़ना नही पड़े गा । ओर हम आराम से बाहर जापाए गै मीनू की भी तबीयत ठीक नहीं रहती जिस की वजह से वो खाना भी नही बना पाती और हमे बाहर से खाना पढ़ता है मां खाना बना दिया करे गी ओर आप मोंटी के साथ उसका ध्यान रखना । ये सब बाते सुन हरकू समझ चुका था की उसके बेटे को उसकी ओर उसकी बीवी की  परवाह नही है वो तो हमे उसको उसके घर का चौकीदार बना कर ओर उसकी बीवी को नौकरानी बना कर ले कर जाना चाह रहा था  । हरकू के पास कोई जवाब नही था मोहन की उन बातो का उसे यकीन नही हो रहा था मोहन की कही उन सब बातो पर । मोहन वहा से चला जाता हैं । हरकू उसे जाता देख रहा था और जब तक देखता रहा जब तक वो दूर ना चला गया। ।

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